झारखंड राज्य जीव जंतु कल्याण बोर्ड सबसे आगे

झारखंड राज्य जीव जंतु कल्याण बोर्ड सबसे आगे
लुप्तप्राय सर्पों की कई  प्रजातियों को छुड़ाया गया: डॉ. शिवानंद काशी


11 अगस्त, 2019; रांची(झारखंड):डॉ.आर.बी. चौधरी 


भारत सरकार देश के सभी प्रदेशों में स्थापित स्टेट एनिमल वेलफेयर बोर्ड के क्रियान्वयन के लिए सतत प्रयासरत है किंतु कुछ को छोड़ कर के तमाम राज्यों में स्टेट एनिमल वेलफेयर बोर्ड निष्क्रिय है जिन राज्यों में सक्रिय भूमिका देखी जा रही है उसमें झारखंड राज्य जीव जंतु कल्याण बोर्ड सिर्फ क्रियाशील ही नहीं है बल्कि वह अग्रणी भूमिका निभा रहा है.इस समय झारखंड बोर्ड जीव जंतु क्रूरता निवारण अधिनियम के लागू कराने के लिए निरंतर प्रयत्नशील है और सपेरों सर्पों की कई दुर्लभ प्रजातियों को छुड़ाया है जो भारत में लुप्तप्राय  हैं.


राज्य जीव जंतु कल्याण  बोर्ड के नोडल ऑफिसर डॉ शिवानंद काशी के नेतृत्व में खूंटी जिला के लोधमा पंचायत के पाकी गांव प्रखंड कर्रा से कई विलुप्त प्राय प्रजाति के सांप जैसे  स्पेक्टेकल्ड कोबरा, रेड सैंड बोआ, ऑर्नेट फ्लाइंग स्नेक, इंडियन रैट स्नेक, कॉमन सैंड बोआ सहित कई सांपों का रेस्क्यू कराया.अन्य विशेषज्ञों के अनुसार इस प्रजाति के सर्प अमूमन लुप्त प्रायहो चुके हैं और इन्हें दुर्लभ प्रजातियों में माना जाता है .डॉ. काशी और उनके साथी मंटू नट से प्राप्त किया है जहां वह सांपों का प्रदर्शन कर रहा था. इस घटना के बारे में जैसे ही उन्हें जानकारी हुई तत्काल प्रदर्शन स्थल पर पहुंच गए. इस पूरे वारदात की जानकारी स्थानीय वन अधिकारी अमर प्रसाद एवं विरेंद्र सोनी को दिया और सर्पों को सपेरे से मुक्त कराया. 


डॉ. शिवानंद काशी ने बताया कि सांप एक वन्य प्राणी है और किसी भी व्यक्ति के द्वारा वन्य प्राणियों को पकड़ना कानूनन अपराध है.अगर इस तरह का कोई कृत्य करते हुएपा ए जाने पर उसके ऊपर वन प्राणी संरक्षण  अधिनियम की 1972 की धारा 9, 39,42 के तहत तत्काल कार्यवाही किए जाने का प्रावधान है जिसमें ₹ 25,000 तक जुर्माना और 5 साल तक की सजा भी हो सकती  है.उन्होंने यह भी कहा कि इस से जीव जंतु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 की धारा 3, 11 का भी  घोर उल्लंघन हुआ है. 


डॉ.काशी का मानना है कि ऐसी घटनाएं इसलिए होती है कि आम आदमी में जीव जंतुओं के महत्त्व एवं संरक्षण की जानकारी नहीं है और न ही नियम कानून की,इसलिए जागरूकता अत्यंत आवश्यक है. इस बचाव कार्य में डॉ. काशी एवं उनके साथियों के साथ साथ- स्थानीय वन्य विभाग के अधिकारियों भूमिका  प्रशंसनीय है.


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