गोशाला विकास का गुजरात मॉडल पूरे देश में लागू किया जाएगा: डॉ. वल्लभभाई कथीरिया

केंद्रीय गोधन विकास योजना से ग्रामीण युवाओं के लिए अब नए रोजगार मिलेंगे


राजकोट (गुजरात)


"हमारे देश में देसी गाय और उसकी संतति की हालात अच्छी नहीं है। हमें किसानों को समृद्ध बनाने के लिए वैज्ञानिक पद्धति से देख-भाल और प्रबंधन प्रणाली को  अपनाना होगा  जिसमें कुदरती तौर तरीके से उत्पादन लेने के तरीके को बढ़ावा देने की परम आवश्यकता है।  आज  खेती करने वाली मिट्टी  अपनी गुणवत्ता खो चुकी है । नतीजन मिट्टी की गंभीर गिरावट के कारण   खाद्य उत्पादों की गुणवत्ता और उसकी सुरक्षा  आज एक बहुत बड़ी चुनौती बन गई है। इस समस्या के नाते मामले हमारे मवेशियों खासकर गोधन और फसल उत्पाद के साथ उसके अवशेष दोनों  प्रभावित हुए हैं जिसका सीधा असर आज हमारे स्वास्थ्य पर है। इतना ही नहीं  रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से किसान की आमदनी भी बहुत कम हो गई है।  इस समस्या को मद्देनजर रखते हुए भारत सरकार ने देसी गाय और उनकी संतति के संरक्षण, संवर्धन और विकास के लिए राष्ट्रीय कामधेनु आयोग की स्थापना की है  ताकि गौ आधारित  कृषि प्रणाली को अपनाकर मिट्टी की खोई हुई शक्ति को वापस लाई जाए  और  गोधन से प्राप्त होने वाले विभिन्न प्रकार के उत्पादों के माध्यम से किसान की आमदनी बढ़ाई जाए", यह बात कही राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के अध्यक्ष ,डॉ. वल्लभभाई कथीरिया  ने । उन्होंने यह भी कहा कि  गोधन संस्कृति से ग्रामीण युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर प्राप्त होंगे ।  साथ ही साथ गाँव से शहर की ओर हो रहे पलायन को रोका जा सकेगा।


आज  डॉ. कथीरिया ने राजकोट के सर्किट हाउस में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस में बोलते हुए इस बात पर जोर दिया कि गायों की देसी नस्लों के संरक्षण और संवर्धन द्वारा गाय आधारित ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार की बहुत गुंजाइश है और देसी गाय सबसे  भारतीय परिवेश में अधिक फिट है। खेती की टिकाऊ कृषि प्रणाली के लिए भारतीय स्थिति- परिस्थिति के मुताबिक भारतीय गाय अत्यंत सहनशील  और उत्पादक है। भारतीय गाय आज जलवायु परिवर्तन के खतरे का  सर्वोत्तम हल  साबित हो रही है क्योंकि गाय के गोबर गोमूत्र के उपयोग से भूमि की गुणवत्ता सुधार करने की  व्यापक क्षमता है।  इसी कारण कृषि  उत्पादन एवं उत्पादों  की गुणवत्ता में सुधार  की अभूतपूर्व क्षमता है। डॉ.कथीरिया ने यह भी बताया कि  राष्ट्रीय कामधेनु आयोग अब पंचगव्य दवाओं और गाय आधारित अन्य उत्पादों के उत्पादन के लिए  बढ़ावा देने के साथ-साथ फसलीय अवशेषों और उत्पादों का उपयोग करने के लिए कई उपक्रमों और आयामों को जोड़ने के लिए समर्पित है।


राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के अध्यक्ष डॉ.कथीरिया ने  बताया कि वह  इस साल  की शुरुआत से पूरे देश का  व्यापक दौरा कर रहे है और पाया है कि गाय आधारित व्यवसाय  इतना लाभकारी है कि  किसानों ,युवा और महिलाओं को उनके घर पर कमाई करने का बहुत बड़ा उद्योग खड़ा किया जा सकता है । गोधन पर आधारित व्यवसायिक क्षमता  की भरपूर संभावनाएं हैं जिसे आज विकसित करने की परम आवश्यकता है। आज के परिवेश में गोधन इतना सशक्त माध्यम है कि यदि पूर्णतया रोजगार सृजन का प्रचुर अवसर उपयोगी बनाया जाए तो गौ संस्कृति में भारत देश को "विश्व गुरु" के रूपमे जाना जाएगा । इतना ही नहीं भारतीय किसान अपने देश की  आर्थिक समृद्ध को मजबूत कर 2025 तक भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में काफी हद तक सहयोग कर सकते हैं।  इसके लिए आज हमें "ऋषि- कृषि" परंपरा को फिर से जीवंत करना होगा।  यही कारण है कि आयोग पंचगव्य के उत्पादन और बिक्री के लिए एक नेटवर्क बनाने की योजना बना रहा है ताकि उन्नत और प्रतिस्पर्धी वैश्विक बाजार में व्यापक रूप से उपयोग करने के लिए किसान के दरवाजे से उत्पाद का पूरा बाजार तंत्र मौजूद रहे।  आयोग मानव संसाधन विकास और उद्यमिता योजना को सफल कार्यान्वयन के लिए अपनी पूरी तैयारी कर चुका है।


नवीनतम योजना और रणनीति के बारे में पूछे जाने पर, उन्होंने कहा कि  गोपालन जागरूकता, शिक्षा, प्रशिक्षण, अनुसंधान और विकास  के साथ-साथ डॉक्टरल अध्ययन के लिए सुविधाओं को शामिल करने की दिशा में आयोग  अपना हाथ बढ़ा रहा है। वर्तमान में हरियाणा और गुजरात राज्य में  स्थित संस्थानों और ईडीआईआई -"भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान" ने गोशाला विकास और प्रबंधन से संबंधित महत्वपूर्ण पाठ्यक्रम शुरू करने और किसानों द्वारा अपने वित्तीय लाभों का उपयोग करने के लिए महत्वपूर्ण पाठ्यक्रम शुरू करने पर सहमति जताई है।डॉ.कथीरिया ने बताया कि बस एक बार देसी गायों की उपयोगिता पर लोगों में वैज्ञानिक  सोच स्थापित हो जाएगी वैसे ही हमारे कर्मठ किसान उन गायों से आर्थिक लाभ लेना शुरू कर देंगे, विशेष करके जो  गायेँ दूध नहीं देती हैं  उनका लालन-पालन और संरक्षण कर लाभ प्राप्त किया जाएगा। उन्होंने किसानों से अनुरोध किया है कि वे देसी गाय रखना शुरू करें और फसलों के अवशेषों को खेतों में न जलाएं  उनका चारे के रूप में उपयोग करें क्योंकि देश में सूखे की भारी कमी है।


प्रेस कॉन्फ्रेंस के अंत में उन्होंने  विश्वव्यापी चुनौतियों  के तरफ इंगित करते हुए कहा कि  आज सबसे जरूरी है कि हम  उन सभी बातों पर विचार करें जिससे  बेहतर स्वास्थ्य,आध्यात्मिक और आर्थिक महत्व के बारे में लोगों  न जानने की वजह से  जीवन में सुख ,शांति  और खुशहाली नहीं मिल पाती ।  लोगों को जागरूक करने के लिए अभियान चलाने की बात कही  और कहा कि आज हमारे तौर- तरीकों और बदलते हुए परिवेश की चुनौतियों को समझने की आवश्यकता है । यही कारण है कि आज का समाज  भारतीय नस्लों के गायों का शरण लेकर  अर्थतंत्र से लेकर पर्यावरण संरक्षण कर सकता है क्योंकि  बिना पर्यावरण संरक्षण के पारिस्थितिकय संतुलन, कृषि विकास, भूमि उर्वरता एवं गुणवत्ता संरक्षण  और प्राकृतिक ऊर्जा  के लाभ नहीं लिए जा सकते हैं । इसे प्राप्त करने के लिए गौ उत्पाद आधारित उद्योग  को जगाना होगा और कोई दूसरा रास्ता नहीं है ।


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