नील गायों की  निर्मम हत्या से पारिस्थितिकी संतुलन बिगड़ेगी- इसे रोकने के लिए आगे आइए


बिहार सरकार द्वारा अभी हाल में नील गायों द्वारा फसलों का नुकसान करने के अपराध में मारने का आदेश दिया गया था जो विभिन्न जीव जंतु कल्याण संस्थाओं एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं के हस्तक्षेप से फिलहाल मामले को कुछ समय के लिए दबा दिया गया है. लेकिन,  देश के विभिन्न प्रांतों में अलग अलग से नील गायों के मारने की कवायद अभी तक दिल दहलाने वाली है. जंगलों की विनाश का जिम्मेदार मनुष्य अब जंगली जीवो को जंगल के बाहर आकार भोजन तलाशने के लिए नीलगायों को दोषी बनाया जा रहा है और उनके हत्या का पूर्ण सुनियोजित व्यूह रचना तैयार की जा रही है. एक तरफ जहां पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण की चुनौतियों को सुलझाने के लिए जी-जान से कोशिश कर रही है, वहीं पर जंगल के जीव जंतुओं को फसल चरने के लिए दोषी करार निर्दोष जानवरों कोण मारा जा रहा है. खाद्य श्रृंखला की गोग्दान एवम प्राकृतिक भोजन व्यवस्था को सभी लोग जानते हैं कि  एक जीवधारी का संबंध दूसरी जीवधारी से गहराई से जुड़ा हुआ है. यह प्रकृति की ऐसी व्यवस्था है कि इसकी एक कड़ी निकालने से समूचे प्राकृतिक व्यवस्था की कड़ी टूट जाएगी.  नील गायों की हत्या के जगह पर क्या इस समस्या से निजात पाने के लिए क्या नील गायों के लिए अभ्यारण में रखने की व्यवस्था नहीं की जा सकती है. इस विषय पर केंद्र सहित राज्य सरकारों को गंभीरता से सोचना चाहिए. साथ ही साथ पर्यावरण संरक्षण एवं पशु कल्याण की दिशा में लगे कर्मठ कार्यकर्ताओं एवं संस्थाओं को सरकार द्वारा पशु हत्या संवन्धी लिए गए ऐसे विनाशकारी निर्णय को वापस लेने की मुहिम चलानी चाहिए. किसी भी अभियान को चलाने और उसे वांछित सफलता पाने के लिए  जन सामान्य को एसे समय आगे आना चाहिए क्योंकि , साल 2015 के अंत में जैसे ही केंद्र सरकार ने नीलगाय को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची 3 से हटाकर अनुसूची 5 में फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले जीवों (वर्मिन)  की श्रेणी में डाला, राज्य सरकारों  के लिए इस पशु को खत्म करने का रास्ता करीब करीब साफ हो गया जो एक दुखद निर्णय था . (लेखक मुंबई स्थित समाज सेवी संस्था "समस्त महाजन" के मैनेजिंग ट्रस्टी एवं भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड, भारत सरकार के सदस्य है.समस्त महाजन से जुड़ने के लिए संपर्क करें-   samastmahajan9@gmail.com/www.samastmahajan.org


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