अब मंदिरों की फूल-पत्तियों जैसे अवशिष्टों को  नदी में विसर्जन करने की जगह खाद बनाया जाएगा- अरुण शर्मा    


महावीर इंटरनेशनल का एक नया अभियान -


रिसाइक्लिंग प्रोसेस को अपनाकर अब मंदिर के चढ़ावे की फूल-पत्तियों से  बनाई खाद खेतों में जायेगी 



फलोदी (राजस्थान)


अपशिष्ट का निपटान  गांव तथा शहरों दोनों के लिए एक बहुत बड़ी समस्या है. इस दिशा में तरह-तरह के प्रयोग समय-समय पर होते रहते हैं पर्यावरण को सुरक्षित रखने की कोशिश पूरी दुनिया भर में की जा रही है. इस दिशा में जब कभी छोटे कस्बे के लोग एक नई पहल लेकर के सामने आते हैं तो वह  सभी के लिए आकर्षण का विषय बन जाता है. ऐसा ही एक नजारा देखने को मिला राजस्थान के फलोदी जैसे छोटे कस्बे में जहां शिवरात्रि के दिन शिव मंदिर में चढ़ाए जाने वाले फूल -पत्तियों को एकत्र कर  महावीर इंटरनेशनल फलोदी के कार्यकर्ता खाद बनाने की कोशिश में जुट गए.



इस पहल के विषय में  फलोदी कस्बे के  लोकप्रिय  युवा समाजसेवी रविंद्र जैन ने बताया कि भारत में 2,350 लाख हेक्टेयर भूमि पर फूलों की खेती की जाती है और  देश में कुल 7,800 लाख टन  फूलों की पैदावार होती है. उत्पादन का कुछ हिस्सा तो निर्यात कर दिया जाता है शेष हिस्सा अपने देश में प्रयोग होता है जिसका आमतौर पर अधिकांश हिस्सा नदी - नाले  या तालाब में प्रवाहित करके जल प्रदूषण समस्या को दो पायदान  और नीचे कर देते हैं.  दक्षिण भारत में मंदिरों की बहुत अधिक संख्या है हर रोज ढेर सारी  फूलों की मात्रा भगवान को अर्पित की जाती है जो कहीं ना कहीं जल मार्गों के माध्यम से या तो स्थानीय नालियों को बाधित करते हैं अथवा इन फूलों को बेरहमी से नदी और तालाब में डाल दिया जाता है जहां जलाशय का शुद्ध पानी गंदा हो जाता है. इसका नतीजा किसी को बताने  और अधिक बताने की  क्या जरूरत है, यथार्थ सभी को पता है .



रविंद्र जैन ने बताया कि महावीर इंटरनेशनल फलोदी के एक सामान्य मित्र प्रयास से  इस  साल शिवरात्रि के दिन चढ़ाए जाने वाले फूल पत्तियों को अलग एकत्र करने का कार्य किया गया. उन्होंने परंपराओं का हवाला देते हुए बताया कि आमतौर से आक, धतूरा बेल पत्र, बेर ,मोगरी व कई तरह के पुष्प शिवलिंग पर समर्पित  दूध मिश्रित जल चढ़ाया जाता है.  उन्होंने आगे बताया कि आयुर्वेद में दूध और गौमूत्र सभी विश के शोधन के काम में लिए जाते हैं. यही उपयोग दूध का यहां किया जाता है ताकि आक व धतूरे के विष  को शोधित कर बेलपत्र के औषधी उपयोग और बेर के रस, गेंदे के प्रति रक्षक गुण उसे इसके साथ एक संपूर्ण खेती के लिए प्रतिरक्षण बन जाता है.पहले  पूरे समाज द्वारा मंदिरों मे से इसे इकट्ठा किया जाता था ताकि इसका प्रयोग हो सके लेकिन इस परंपरा को लोग भूल गए और अब शिवरात्रि के दूसरे दिन इसे ऐसे ही रख दिया जाता है. 


अरुण शर्मा के अनुसार इस साल महावीर इंटरनेशनल फलोदी की टीम ने फलोदी के शिव मंदिरों में संपर्क कर पुजारी एवं भक्तों से मिलकर एक योजना बनाई.  उनसे यह मिश्रण युक्त सामग्री लेकर उसे खेती में प्रयोग लेने के लिए जैविक खाद में परिवर्तन करने की कार्यवाही शुरू की. जैविक कृषि के विशेषज्ञ वैज्ञानिक अरुण शर्मा से सलाह लेकर  जैविक खाद बनाई जाएगी जो कि इस धरती माता के पोषण के लिए बहुत ही उपयोगी रहेगी. आज जहां रासायनिक खादों का उपयोग करने से कैंसर बढ़ रहा है उसी समय में यदि इस प्रकार की जैविक खाद का प्रयोग किया जाता है तो वह हम सभी के स्वास्थ्य के लिए तथा पर्यावरण के लिए लाभदायक सिद्ध होगा.



रविंद्र जैन ने यह भी बताया कि फलोदी स्थित 15 शिव मंदिरों से है लगभग 300 किलो पुष्प व अन्य अर्पित की गई मिश्रित सामग्री को इकट्ठा किया. इसके लिए महावीर इंटरनेशनल के मधुकर मोखा, रविंद्र जैन, प्रफुल जैन, भारत थानवी , राकेश गोलेछा, अश्विनी जोशी ,अरविंद सिंह व अन्य सदस्यों ने सहयोग किया.


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