चलो गाय की ओर, चलो गांव की ओर तथा चलो प्रकृति की ओर :डॉ. बल्लभभाई कथीरिया
नई दिल्ली
भारत सरकार द्वारा स्थापित राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के तकरीबन डेढ़ साल हो गए। आयोग के प्रथम अध्यक्ष डॉ. बल्लभभाई कथीरिया द्वारा राष्ट्रीय गौ -संवर्धन में संरक्षण भूमिका पर आयोजित मीडिया कर्मियों की पहली वेवनार मीटिंग में देश भर के सौ से अधिक विशेषज्ञों एवं मीडिया कर्मियों ने भाग लिया। मीटिंग की शुरुआत आयोग के अध्यक्ष डॉक्टर कथीरिया के संबोधन से आरंभ हुआ जिसमें उन्होंने गाय और गांव के पारस्परिक संबंधों और उसके महत्व बताते हुए राष्ट्रीय विकास के योगदान की चर्चा की। उन्होंने बताया कि आज यह बहुत बड़ी जरूरत है कि चलो गाय की ओर, चलो गांव की ओर तथा चलो प्रकृति की ओर चलें लेकिन यह तब तक संभव नहीं हो सकता जब तक लोग मन से स्वीकार नहीं करते। इस कार्य में देश के मीडिया का बहुत बड़ा योगदान हो सकता है।
राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के प्रथम अध्यक्ष डॉ. बल्लभभाई कथीरिया पेशे से कैंसर सर्जन है जिनका जीवन एक सर्जन से ज्यादा समाज सेवक के लिए एक सांसद ,केंद्रीय मंत्री और गुजरात गोसेवा एवं गोचर विकास बोर्ड के अध्यक्ष आदि रूप में उल्लेखनीय सेवाएं कर चुके हैं। 21 फरवरी 2019 को स्थापित राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के बैनर के तले बतौर पहले अध्यक्ष के रूप में देशभर के संस्थानों ,गौशालाओं ,अनुसंधान केंद्रों एवं प्रगतिशील प्राकृतिक खेती के किसानों से मिलकर इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि पुरातन काल से स्थापित ग्रामीण समृद्धि की मूल आधार गाय कहीं गांव से गायब हो रही है और उसे फिर से प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए। इस सिलसिले में आयोजित आज की मीडिया कर्मियों की वेवनार की पहली मीटिंग का मुख्य फोकस था कि गाय के प्रति दूध उत्पादन की महत्ता के अलावा गाय के द्वारा उत्पादित प्रत्येक उत्पाद के महत्व को समझना होगा। इस विषय को उन्होंने उसे बाजार में उतारने की बात कही और अपने संवाद में बताया कि गोबर गोमूत्र से गृह उद्योग चालू हो सकते हैं। गोबर गोमूत्र से उर्वरक ,कीटनाशक ,सीएनजी,ईंधन के रूप में गोबर के लट्ठे,औषधियां,सैनिटाइजर,कागज,दीपक, मूर्तियां क्या क्या नहीं बनाई जा सकती हैं। इन्हें आज बाजार देने की जरूरत है जिसमें अपार आमदनी की संभावनाएं हैं। गांव आधारित सभी सामग्री पूरी तरह से इको फ्रेंडली है। इसे आगे बढ़ाने के लिए मीडिया ही लोगों के माइंड सेट को बदल सकती है और इससे सिर्फ देश का पर्यावरण ही नहीं सुधरेगा बल्कि ग्रामीण बेरोजगारी दूर होगी और भारत के प्रधानमंत्री के आवाहन "आत्मनिर्भर भारत" का सपना भी पूरा होगा।
आज राष्ट्रीय मीडिया को संबोधित करते हुए डॉ. कथीरिया ने यह बताया कि राष्ट्रीय कामधेनु आयोग सिर्फ पॉलिसी मेकिंग इंस्टिट्यूशन तक ही नहीं सीमित है बल्कि गांव आधारित आजीविका और ग्रामीण अर्थ व्यवस्था सुदृढ़ करने लिए निरंतर जिम्मेदार है। इस कार्य को कोऑपरेटिव सिस्टम और पब्लिक पार्टिसिपेटरी सिस्टम के माध्यम से विकसित कर लोगों को जोड़ने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि इस बार दिवाली के अवसर पर गोबर से 11 करोड़ दीए बनाने का लक्ष्य रखा गया है ताकि गोबर जैसे उत्पाद की उपयोगिता बढे , लोगों को रोजगार मिले और हमारा पर्यावरण भी सुरक्षित रहे। इस दिशा में किए जा रहे हैं कई सफलताओं का जिक्र किया और कहा कि गोमय वस्तुओं के निर्माण और बिक्री से एंटरप्रेन्योरशिप को एक नई आशा की किरण मिली है। रासायनिक खादों के आयात एवं उपयोग पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि गोबर से प्राप्त होने वाले ऑर्गेनिक खाद की उपयोगिता नहीं के बराबर है इसलिए इसके उपयोग को बढ़ाकर रासायनिक खाद के उपयोग से होने वाले जमीन को जहरीला बनाने से षड्यंत्र को रोका जा सकता है। इस विषय को एक व्यापक अभियान चलाने की जरूरत है जिसमें मीडिया की बहुत बड़ी भूमिका है। डॉ. कथीरिया ने पारंपरिक पशु चलित मशीनों के महत्व को बताने से लेकर गौ संरक्षण-संवर्धन के लिए नई विधाएं जैसे काऊ टूरिज्म,कामधेनु विश्वविद्यालय,विभिन्न प्रशिक्षण संस्थानों तथा पशुपालन विभाग के मानव संसाधन अध्ययन-प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में समृद्धि गाय और गांव के पारस्परिक संबंधों पर पाठ्यक्रम जोड़ने की भी बात कही।
मीडिया कर्मियों की इस बैठक में पंडित दीन दयाल उपाध्याय पशु विज्ञान एवं पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ.के. एम. एल. पाठक ने देसी गाय के आर्थिक महत्त्व की वैज्ञानिक विवेचना करते हुए बताया कि देसी गाय शंकर गायों की तुलना में हमारे लिए काफी उपयुक्त है और इसके लालन-पालन पर बहुत कम खर्च आता है। उन्होंने कहा कि देसी गाय का उत्पादन तुलनात्मक रूप से संकर नस्ल से अधिक होता है। इस बात को मीडिया कर्मियों के माध्यम से हर आदमी तक ले जाने की जरूरत है। मीटिंग में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अजीत महापात्रा ने गौ संवर्धन-संरक्षण के कई व्यवहारिक उपाय बताएं तथा इस विषय को आध्यात्मिक चेतना से जोड़ने पर बल दिया। उन्होंने मीडिया की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि मीडिया आज संचार माध्यम का एक सशक्त माध्यम है। भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के पूर्व मीडिया प्रभारी एवं प्रधान संपादक डॉ आर बी चौधरी ने कहा कि केंद्र सरकार के कई प्रतिष्ठानों एवं आयोगों की भांति यदि राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के अध्यक्ष डॉ. कथीरिया मीडिया द्वारा कर्मियों की एक प्रकोष्ठ बनाकर उन्हें आयोग से जोड़ना चाहिए।
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